
Edul Fitr:धनबाद : अल्लाह ताला ने अपने बंदों पर रमजान शरीफ के रोजे खत्म होने की खुशी में शुक्रिया के तौर पर सदका मुकर्रर फरमाया है। उसी को सदका ए फितर कहते हैं। रमजान के रोजे खत्म होने की खुशी में जो ईद मनाई जाती है उसको इसीलिए ईद उल फितर कहा जाता है। सदका ए फितर हर मुसलमान साहिबे निसाब पर वाजिब है।

हदीस शरीफ में सदका ए फितर की बहुत ताकीद की गई है।
नबी ए अकरम सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम ने एक आदमी को मुकर्रर करके मक्का मुअज्जमा की गली कुचो में यह ऐलान कराया की सदका ए फितर हर मुसलमान पर वाजिब है। चाहे वो मर्द हो या औरत, छोटा हो या बड़ा, आजाद हो या गुलाम। सदका ए फितर गोरबा के खाने की गर्ज से मुकर्रर किया गया है। और इसलिए भी मुकर्रर किया गया है कि रोजे में जो कोताही हो गई हो वह दूर हो जाए। रोजे में कभी कोई बेहूदा बात हो जाती है वह सदका ए फितर से माफ कर दिया जाता है।
जो मुसलमान इतना मालदार है के जरूरियात से ज्यादा उसके पास उतनी कीमत का माल व असबाब मौजूद है
लिहाजा जो शख्स सुबह सादिक होने से पहले ही इंतकाल कर गया तो उस पर सदका फितर वाजिब नहीं है। और जो बच्चा सुबह सादिक से पहले पैदा हुआ है उसकी तरफ से सदका ए फितर अदा किया जाएगा। सदका ए फितर की अदायगी का असल वक्त ईद उल फितर के दिन नमाजे ईद से पहले है। अलबत्ता रमजान उल मुबारक में किसी भी वक्त अदा किया जा सकता है।
Edul Fitr सदका ए फितर किसे दें और किसे ना दें ?
मदारिस, गरीब, मिस्कीन, भाई, बहन, भतीजी, भांजी, चाचा, फूफी, खाला, मामू, सौतेला बाप, सौतेली मां, सास, ससुर, साला, साली वगैरह को दिया जाना जाईज है। वहीं मां, बाप, दादा, दादी, नाना, नानी, परदादा, परदादी, बेटा, बेटी, पोता, पोती, नाती, नतनी, मियां, बीबी वगैरह इन सब को सदका ए फितर देना नाजायज है। उक्त सारी बातें गुलजारबाग, वासेपुर, धनबाद स्थित जामिया अब्दुल हई अशरफ के प्रिंसिपल हाजी कारी गुलाम मोहिउद्दीन अशरफी ने कही।