
नई दिल्ली।
रामायण का एक खास पात्र है केवट। क्लिक कर पढ़ें प्रभु राम और केवट का संबंध……
(15 मई केवट जयंती पर विशेष)
नई दिल्ली। रामायण एक उच्च आदर्शों से ओतप्रोत महान धार्मिक ग्रंथ है। उसमें भक्ति, नीति, न्याय, आध्यात्म व मानवीय मूल्यों के अतिरिक्त व्यापक रूप में सामाजिक चेतना भी विद्यमान है। न तो मानस में हमें छुआछूत दिखाई देता है,न ही वर्णगत/जातिगत भेदभाव। रघुकुल नंदन श्रीराम हर जाति/वर्ग के व्यक्ति को गले लगाते हैं। उसी श्रेणी में मल्लाह केवट का नाम भी शामिल है।
केवट भोईवंश का था तथा मल्लाह का काम करता था।
केवट रामायण का एक खास पात्र है ,जिसने प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपनी नाव में बिठाकर गंगा पार करवाया था। केवट का वर्णन रामायण के अयोध्याकाण्ड में किया गया है।
राम केवट को आवाज देते हैं – नाव किनारे ले आओ, पार जाना है। परंतु—
“मांगी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई।
मानुष करनि मूरि ।।”
– श्रीराम ने केवट से नाव मांगी, पर वह लाता नहीं है। वह कहने लगा- मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। वह कहता है कि पहले पांव धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़ाऊंगा।
केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था। अयोध्या के राजकुमार केवट जैसे सामान्यजन का निहोरा कर रहे हैं। यह समाज की व्यवस्था की अद्भुत घटना है।
केवट चाहता है कि वह अयोध्या के राजकुमार को छुए। उनका सान्निध्य प्राप्त करें। उनके साथ नाव में बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त करें। अपने संपूर्ण जीवन की मजूरी का फल पा जाए। राम वह सब करते हैं, जैसा केवट चाहता है। उसके श्रम को पूरा मान-सम्मान देते हैं।
केवट जयन्ती पर राम-केवट प्रसंग हमें भावविभोर कर देता है। यह प्रसंग हमेें सामाजिक समानता का आदर्श सिखाता है ।जो सराहनीय भी है और अनुुुुकरणीय भी।
“केवट की बड़भागिता,
में वंदन का योग ।
रामराज्य में दूर थे,
सब सामाजिक रोग।। ”