Jharkhand News : ट्रक मालिकों के हक और मेहनत की कमाई खाने वाले ट्रांस्पोर्टरों पर अब तक क्यूँ नहीं कि गई करवाई ?….
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Jharkhand News : ट्रक मालिकों के हक और मेहनत की कमाई खाने वाले ट्रांस्पोर्टरों पर अब तक क्यूँ नहीं कि गई करवाई ?….
- आखिरकार मौत का कारण बनने वाले ट्रांस्पोर्टरों को कौन दे रहा है संरक्षण।
- स्थानीय भू रैयत व प्रभावित गांव वासियों को मसीहा बताने वाले नेता क्यूँ है मौन ? कोल क्षेत्र में हक दिलाने के नाम पर स्थानीय का सहारा लेकर अपनी रोटी सेकने में जुटे है दलाल , बिचौलिया व नेता।
- मृतक दिलेश्वर को नहीं मिला इंसाफ ! इंसाफ के लिए कराह रही है उसकी आत्मा।
NEWSTODAYJ : चतरा जिला के टंडवा काले हीरे की नगरी के नाम से जाना जाता है ! इस काले हीरे से भारत सरकार कोल मंत्रालय को हर वर्ष अरबों रुपये राजस्व की कमाई होती है। कोयला का खदान खुलने पर स्थानीय लोगो में काफी खुशी थी पर आज सबसे अधिक सबसे छला व ठगा महसूस कर रहे है।काले हीरे के साथ-साथ टंडवा औद्योगिक नगरी के नाम से भी विख्यात है पर इस क्षेत्र की जनता मूलभूत सुविधा पाने के लिए तरस रही है।
इस क्षेत्र में अरबों रुपये राजस्व भारत सरकार कोल मंत्रालय को भले ही प्राप्त हो रहा हो पर इस क्षेत्र की जनता बेरोजगारी , अशिक्षा , दूषित नदी का पानी , स्वास्थ्य और उबड़ खाबड़ सड़को का मार झेल रहे है। यहां के युवा रोजगार के लिए भी भटक रहे है। इस क्षेत्र की जनता के द्वारा अधिग्रहण किये गए भूमि से कोयला निकालकर भारत के कई राज्यों को जगमगाया जा रहा है पर आज भी टंडवा की हालत दीपक तले अंधेरा है। इस क्षेत्र में समस्या को लेकर समय-समय पर स्थानीय नेता से लेकर राज्य के नेतागण आकर इन्हें हक दिलाने की बात कहते है और इस माध्यम से आंदोलन और धरना की प्रक्रिया पूरे जोशोखरोश से किया जाता है।
सीसीएल के अधिकारी और प्रतिनिधित्व कर्ता के बीच वार्ता भी होती है। वार्ता में निष्कर्ष के रूप में समस्या जल्द समाप्त किए जाने की घोषणा भी कर दी जाती है पर समस्याएं आज भी उसी प्रकार बरकरार है। इसका मुख्य वजह यही है कि मुद्दे व समस्याओं को नेता कभी समाप्त नहीं होने देना चाहते है क्योंकि उन्हें भी यह पता है कि समस्या व मुद्दा जब समाप्त हो जाएगा तो उनकी दुकानदारी नहीं चलनेवाली है।टंडवा के दोनों कोल परियोजना आम्रपाली और मगध की जनता मूलभूत समस्याओं के साथ साथ प्रदूषण का सबसे बड़ा शिकार हुए है और हो भी रहे है।हालांकि सड़क दुर्घटना में भी इस कदर मौतें हुई है कि कई माँ की कोख सुनी हो गई तो कई सुहागिनो को विधवा होना पड़ा है और कई बहनों को अपना भाई खोना पड़ा है।टंडवा वासी अपनी पीड़ा से निरंतर कराह रहे है।
नेता से लेकर कई ऐसे लोग है जिन्होंने इस क्षेत्र की जनता को इंसाफ और हक दिलाने के नाम पर अपनी रोटी सेकने का काम किया और करते आ रहे है।इस क्षेत्र में सड़क दुर्घटना या प्रदूषण से अकाल मृत्य या CCL की लापरवाही या ट्रांसपोटर्स के द्वारा किये गए शोषण का शिकार से किसी ने आत्महत्या कर लिया हो ये इस क्षेत्र के लिए नई बात नहीं है।मौत में राजनीति किए जाने की बातें आने लगती है इन सबों के पीछे वजह एक ही होता है।आर्थिक स्रोत। जनता वजह भी जानती है पर भोलीभाली और गरीब जनता को शायद यही लगता है कि उनका नेता जी उन्हें उचित न्याय दिलाएंगे। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है।ट्रांस्पोर्टरों के शोषण का शिकार होकर दिलेश्वर की जान चली गई। ट्रक व हाइवा मालिक का बकाया भाड़ा काफी लम्बे समय से है।
ट्रक व हाइवा मालिक के द्वारा कई बार बैठक किया गया और अपने बकाया भाड़ा को लेकर CCL से लेकर जिला प्रशासन तक फरियाद लगाया ताकि बकाया भाड़ा मिल सके पर निष्कर्ष शून्य निकला। परिस्थिति बिगड़ता गया और बकाया भाड़ा के कारण कई ट्रक व हाईवा मालिकों का क़िस्त फेल होता गया ! जिसका खामियाजा दिलेश्वर को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।अगर सभी ट्रक व हाईवा मालिक ट्रांस्पोर्टरों के विरुद्ध मोर्चा खोले होते और स्थानीय पुलिस के पास लिखित शिकायत किए होते तो शायद दिलेश्वर का जान बच जाता। जिस तरह से दिलेश्वर की लाश पर राजनीतिक किया गया और मामले को विपरीत दिशा में मोड़ दिया गया इससे साफ जाहिर होता है कि एशोशियशन के नाम पर अध्यक्ष से लेकर अन्य नेता व जन प्रतिनिधि हक दिलाने के नाम पर जेब भरने का काम तो नहीं कर ली ?
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जानकारी के अनुसार हिन्डालको , टूल्ली माइनिंग , प्रणव नमन, डेटन ,आनंद कोल सहित कुछ और ट्रांसपोर्टरों के पास ट्रक व हाईवा मालिकों का बकाया भाड़ा है।इन सभी ट्रांस्पोर्टरों के विरुद्ध प्रशासन न्याय संगत करवाई करें ताकि ट्रक व हाइवा मालिकों को करोड़ो रूपये बकाया भाड़ा का भुगतान मिल सके और अपना जीवनयापन में सुधार कर अपना ट्रक व हाईवा को बचा सकेंगे तथा दिलेश्वर का कराह रही आत्मा को भी इंसाफ मिलेगा।