Good news of oxygen : बोकारो दे रहा प्राणवायु सात राज्य को , महज 250 रुपये में प्राणवायु का जंबो सिलेंडर जिले में नही कमी है सिलेंडर की…
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Good news of oxygen : बोकारो दे रहा प्राणवायु सात राज्य को , महज 250 रुपये में प्राणवायु का जंबो सिलेंडर जिले में नही कमी है सिलेंडर की…
NEWSTODAYJ : बोकारो का ऑक्सीजन प्लांट बोकारो स्टील संयंत्र की स्थापना के साथ ही बना है। जिसकी उत्पादन क्षमता 750 एमटी है। वहीं निजी क्षेत्र की कंपनी आइनोक्स एयर प्राइवेट लिमिटेड 1250 एमटी ऑक्सीजन का उत्पादन करता है। दोनों मिलाकर गैसियस ऑक्सीजन 2000 एमटी के साथ 150 एमटी तरल मेडिकल ऑक्सीजन का भी उत्पादन कर रहे हैं। पहले मात्र 50 टन का उत्पादन होता था जिससे पूरे देश में कंपनी बेचती थी। फिलहाल जब देश को जरूरत पड़ी है तो कंपनी 150 एमटी तक कर रही है।
इसमें और बढ़ाया जा सकता है। फिहहाल बोकारो स्टील प्लांट से मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति झारखंड के साथ ही बिहार, यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में की जा रही है।वर्ष 2020 में पहली बार अगस्त माह में तरल ऑक्सीजन का आंकड़ा व मांग बढ़ने पर सेल ने इसके डाटा का संधारण प्रारंभ किया। अगस्त से मार्च माह तक मात्र 6116 एमटी तरल गैस की मांग हुई जिसे बोकारो से पूरा किया गया। अप्रैल, 2021 के पहले सप्ताह तक मात्र 67 टन आपूर्ति हुई। फिर 12 अप्रैल से मांग बढ़ी और 26 अप्रैल तक 2400 टन से अधिक तरल आक्सीजन की आपूर्ति की जा चुकी है। जिससे अब तक दो लाख चालीस हजार सिलिंडर भरे जा चुके होंगे या प्रक्रिया होंगे। यदि झारखंड की बात करें तो राज्य में लगभग दो हजार ऑक्सीजन बेड होने का सरकार दावा कर रही है। इन दो हजार मरीजों को भर्ती भी किया गया होगा तो प्रत्येक दिन मात्र 17 से 20 टन ऑक्सीजन की आवश्यकता है।
इसके लिए बोकारो के चार ऑक्सीजन प्लांट जो कि बॉटलिंग करते हैं वहीं पूरे राज्य की जरूरत को पूरा करने में सक्षम हैं। जबकि राज्य में 15 से 20 ऐसे संयंत्र है। इससे साफ है कि न तो राज्य में तरल गैस की कोई कमी है और न ही सिलिंडर की। बस संसाधन का बेहतर प्रबंधन ही सबकुछ ठीक कर देगा।बोकारो जिले में ऑक्सीजन की जरुरत की बात करे तो बोकारो के सरकारी व निजी अस्पतालों में 338 आक्सीजन बेड हैैं। बोकारो जनरल अस्पताल में 64 की जगह 83 बेड पर मरीजों का 22 अप्रैल को ऑक्सीजन दिया जा रहा था। वहां न तो बाहर से सिलेंडर मंगाने की जरुरत है। यहां लिक्विड ऑक्सीजन को गैस में बदलने का प्लांट स्थापित है। आपात स्थिति के लिए 50 से 100 सिलेंडर रखे जाते हैं।
किसी मरीज को सपोर्ट सिस्टम के तहत रेफर किया जाता है, तभी सिलेंडर का उपयोग किया जाता है। कभी बोकारो के सारे ऑक्सीजन बेड भर जाय तो भी ऑक्सीजन उत्पादन की सबसे छोटी कंपनी यहां की जरुरत को पूरा कर देगी।बोकारो की उत्पादन कंपनियों के पास इतने आर्डर नहीं है कि ऑक्सीजन कंपनियों में तीन पाली में काम कराना पड़े। इतने हाहाकार के बीच कंपनियों में सिर्फ एक पाली में ऑक्सीजन उत्पादन अथवा सिलेंडर भरने का काम चल रहा है। ऑक्सीजन उत्पादकों का कहना है कि औद्योगिक इकाइयों में ऑक्सीजन की मांग कम हो चुकी है। मेडिकल क्षेत्र से इतनी मांग नहीं आ रही है कि तीन पाली में उत्पादन किया जाय।एक सिलिंडर को बनाने में एक बॉटलिंग प्लांट के संचालक को 160 रुपये का तरल गैस , बिजली व मजदूर को मिलाकर अधिकत्तम 200 रुपये पड़ता है। यदि स्वयं के कैप्टीव प्लांट से उत्पादन करे तो 250 रुपये का खर्च है। यही वजह है कि बोकारो में सिलिंडर 200 रुपये से 350 तक आराम से किसी को भी मिल रहा है। स्थिति यह है कि गैस के बाॅटलिंग प्लांट से बात किया जाता है तो संचालक कहते हैं कि भैया पैसा नगद मिल तो जाएगा।
चूंकि अब से पहले औद्योगिक व मेडिकल उपयोग के लिए सिलिंडर देते थे तो उधार में देते थे, उपयोग के बाद पैसा मिलता था। बोकारो की सबसे पुरानी कंपनी इस्टर्न ऑक्सीजन ने एक हजार मेडिकल ऑक्सीजन सिलेंडर को भरने की तैयारी की हुई है। एक जंबो सिलेंडर को भरने का शुल्क अधिकतम 350 रुपये है। जीएसटी की रकम जोड़ दी जाय तो कुल राशि 392 रुपये होगी। झारखंड इस्पात के संचालक राकेश कुमार गुप्ता का कहना है कि 10 एमटी में दो हजार जंबो सिलेंडर को भरा जा सकता है। दो सौ रुपये में सिलिंडर भरकर देने के लिए तैयार हैं। पिता ने कह दिया है कि मुनाफा नहीं कमाना है सो 224 रुपये में जीएसटी के साथ सिलिंडर भर कर दे रहे हैं।