
Atal ji’s second death anniversary : आज पुर्व प्रधानमंत्री अटल जी का पुण्यतिथि , अटल जी के जीवनी के बारे में पढ़े…
- काल के कपाल पर लिखने-मिटाने’ वाली वह अटल आवाज हमेशा के लिए आज से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 2018 को खामोश हो गई।
- स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह राजनीति शास्त्र में डिग्री लेने के लिए कानपुर आना चाहते थे लेकिन पैसों की तंगी के चलते उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी उन्हें कानपुर नहीं भेज सके।
NEWSTODAYJ नई दिल्ली(ब्यूरो रिपोर्ट) : पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की आज दूसरी पुण्यतिथि है। इस मौके पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है और श्रद्धांजलि दे रहा है। ‘काल के कपाल पर लिखने-मिटाने’ वाली वह अटल आवाज हमेशा के लिए आज से ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 2018 को खामोश हो गई। अटलजी वही शख्स हैं जिन्होंने बीजेपी को सियासत के शून्य से शिखर तक पहुंचाया। अटलजी की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया सकता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक बार किसी विदेशी प्रधानमंत्री से उनका परिचय देश के भावी प्रधानमंत्री के रुप में करवाया था। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ, इस दिन को भारत में बड़ा दिन भी कहा जाता है।
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अटल बिहारी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह नगर ही हुई। यहां स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह राजनीति शास्त्र में डिग्री लेने के लिए कानपुर आना चाहते थे लेकिन पैसों की तंगी के चलते उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी उन्हें कानपुर नहीं भेज सके। इसके बाद ग्वालियर के राजा ने उन्हें 72 रुपए की छात्रवृत्ति देकर आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर भेज दिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री ली थी। क्या कोई विश्वास करेगा कि भारतीय राजनीति का सर्वोच्च चेहरा छात्र जीवन में क्लास बंक भी किया करता था।
राजनीति शास्त्र की पढ़ाई करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने वकालत की पढ़ाई भी डीएवी कॉलेज की। बेटे को वकालत पढ़ता देख पिता का भी मन हुआ, उन्होंने भी उसी साल एलएलबी में एडमीशन ले लिया। आपकों जानकर शायद हैरानी होगी कि पिता-पुत्र दोनों एक ही क्लॉस में बैठकर पढ़ाई करते थे। डीएवी कॉलेज के राजनीति शास्त्र विभाग में बोर्ड पर अभी भी वाजपेयी का नाम लिखा हुआ है। उनके समय में ये कॉलेज आगरा यूनिवर्सिटी से जुड़ा था। वहीं अब यह कॉलेज कानपुर के छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय का हिस्सा बन चुका है। कानपुर के इसी डीएवी कालेज ने अपने इस एल्युमिनाई छात्र को पूरा सम्मान देते हुए पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेन्ट में उनका चित्र लगाया हुआ है। यहां पढ़ई करने वाले छात्र पूर्व छात्र की तस्वीर से प्रेरणा हासिल करते हैं।
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अपने करियर के शुरुआती दौर में वे और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, दोनों पत्रकार थे। अटल बिहारी राजनीति में कैसे आए इसके पीछे एक प्रेरणादायक कहानी है। एक स्कूल टीचर के घर में पैदा हुए वाजपेयी के लिए जीवन का शुरुआती सफर आसान नहीं था। 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया ( अब लक्ष्मीबाई ) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी। उन्होंने राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्रधर्म, पॉन्चजन्य और वीर अर्जुन जैसे अखबारों-पत्रिकाओं का संपादन किया।
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वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और इस संगठन की विचारधारा (राष्ट्रवाद या दक्षिणपंथ) के असर से ही उनमें देश के प्रति कुछ करने, सामाजिक कार्य करने की भावना मजबूत हुई। इसके लिए उन्हें पत्रकारिता एक बेहतर रास्ता समझ में आया और वे पत्रकार बन गए। खुद अटल बिहारी ने बताई प्रेरणा उनके पत्रकार से राजनेता बनने का जो जीवन में मोड़ आया, वह एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा है। इसके बारे में खुद अटल बिहारी ने वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह को एक इंटरव्यू में बताया था। इस इंटरव्यू में वाजपेयी ने बताया था कि वे बतौर पत्रकारिता अपना काम बखूबी कर रहे थे। 1953 की बात है, भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे।
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जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध करने के लिए डॉ. मुखर्जी श्रीनगर चले गए। परमिट सिस्टम के मुताबिक किसी भी भारतीय को जम्मू-कश्मीर राज्य में बसने की इजाजत नहीं थी। यही नहीं, दूसरे राज्य के किसी भी व्यक्ति को जम्मू-कश्मीर में जाने के लिए अपने साथ एक पहचान पत्र लेकर जाना अनिवार्य था। डॉ. मुखर्जी इसका विरोध कर रहे थे। वे परमिट सिस्टम को तोड़कर श्रीनगर पहुंच गए थे। इस घटना को एक पत्रकार के रूप में कवर करने के लिए वाजपेयी भी उनके साथ गए थे। वाजपेयी इंटरव्यू में बताया था कि, ‘पत्रकार के रूप में मैं उनके साथ था। वे गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन हम लोग वापस आ गए। डॉ. मुखर्जी ने मुझसे कहा कि वाजपेयी जाओ और दुनिया को बता दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं, बिना किसी परमिट के।’ इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नजरबंदी में रहने वाले डॉ. मुखर्जी की बीमारी की वजह से मौत हो गई। इस घटना से वाजपेयी काफी आहत हुए। वह इंटरव्यू में कहते हैं, ‘मुझे लगा कि डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए।’ इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए। इसके बाद साल 1957 में वो पहली बार सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे।
अटल जी जनसंघ, जनता पार्टी और बाद में बीजेपी की नींव रखने वालों में शामिल थे। 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ, एक राजनीतिक दल के रूप में पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 2 सीटें ही आई थी। इसके बावजूद वाजपेयी ने हार नहीं मानी और उन्होंने कहा था, ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।’ और ये सच साबित हुआ। मौजूदा समय में केंद्र के साथ-साथ देश की 20 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। देश के राजनीतिक इतिहास में बीजेपी ने जब एंट्री की थी तो उस समय शायद ही किसी ने भी सोचा होगा कि एक दिन पार्टी देश के आधे हिस्से में सत्ता संभाल रही होगी। बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में वाजपेयी ने सबसे अहम भूमिका अदा की।
अटल बिहारी वाजयेपी 1942 में उस वक्त राजनीति में आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए। 1957 में अटलजी बार बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। 1968 में वो राष्ट्रीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता मौजूद थे।
1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए, जब वे आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे। 1977 में जनता पार्टी के महानायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आपातकाल का विरोध हो रहा था। जेल से छूटने के बाद वाजयेपी ने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर लिया। 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने। हालांकि 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई।
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इसके बाद जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ उनके पुराने दोस्त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। वाजपेयी बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1994 में कर्नाटक, 1995 में गुजरात और महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत हुई। उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई। 1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने. यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।
कभी अपनी कविताओं और भाषणों से लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाले वाजपेयी स्वास्थ्य खराब होने के कारण सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए थे। 2005 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था और तब से वह अपने घर पर ही थे। अटल बिहारी वाजपेयी को कई वर्षों से बोलने और लिखने में भी तकलीफ होती थी। वह किसी को पहचान भी नहीं पा रहे थे। आखिरी बार उनकी तस्वीर साल 2015 में सामने आई थी जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनके आवास पर जाकर उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को 2014 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। आपको बता दें कि सिर्फ प्रधानमंत्री रहने के दौरान नहीं कई बार विपक्ष में रहते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसा काम किया, जिसकी वजह से विपक्ष के लीडर के तौर पर भी उनको काफी सम्मान मिला।