भला जंगली जानवरों की “सुरक्षा” करे तो “कौन” ? जंगल में रहने वाले जीव-प्राणी तो अब गांव-देहात में भी पहुंच कर “आनंद” प्राप्त करने लगे हैं
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(गढ़वा)
(संवाददाता-विवेक चौबे)गढ़वा : भला जंगली जानवरों की “सुरक्षा” करे तो “कौन” ? जंगल में रहने वाले जीव-प्राणी तो अब गांव-देहात में भी पहुंच कर आनंद” प्राप्त करने लगे हैं।
वे आजाद व निर्भीक हैं उन्हें तो केवल आजादी चाहिए…..उन्हें क्या पता की गांव में किसी का खेती नष्ट करने से क्या होगा ? यह बात तो केवल मनुष्य प्राणी हीं जान व समझ सकते हैं।मनुष्य प्राणी में भी सभी नहीं।धनि लोगों को भी क्या पता,उन्हें कृषि कार्य थोड़े करने हैं।उन्हें,कोई दिक्कत होने पर दुकान,बाजार आदि कई स्थानों से पैसों की बदौलत खरीद लेंगे,क्योंकि वे जो “धनी” हैं।पता तो केवल कृषको को है,क्योंकि किसान अपनी जान को जान न समझकर अपने खेत में खून- पसीना हमेशा एक करता रहता है।सिर का पसिना घुटनों तक आता रहता है।
जानवरों” की तरह “खेत” में “काम” करता रहता है।
किसान के द्वारा किए गए खेती को अब जंगली जानवर पूर्ण रूप से बर्बाद करने में लग गए हैं।कभी जानवरों को “खेत” में तो कभी घर के “छत” पर देखा जा रहा है।
आखिर “क्यों।इसलिए जनाब की उन्हें “सुरक्षित” रखा नहीं जा रहा है…..हलाकि सरकार भी चाह रही है की जंगली जानवर जंगल में ही सुरक्षित रहें,किन्तु लापरवाही तो “विभाग” की ही है न आइए,आपको कुछ इस प्रकार की ही “खबर” से “रु-ब-रु” कराते हैं खबर है,कांडी प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पतिला की मंगलवार को सुबह सात बजे देखा गया की एक छोटा नीलगाय लोगो के घरों के “छप्पर” पर चढ़ कर लोगो का खूब “मनोरंजन” कर रहा है। उसे उतारने के लिए गांव के लोगों को तो तकरीबन एक से डेढ़ घंटे तक खूब “मसक्कत” करनी पड़ी । सर्वप्रथम तो वह नसमुद्दीन अंसारी के घर के छप्पर पर चढ़ गया।वहां से लोगो द्वारा भगाने के पश्चात नरेश पासवान के छप्पर पर चढ़ गया ।उसके छप्पर पर कूदने से काफी “खपड़ा” भी टूट गया,जिससे भारी नुकशान भी हुआ।लोगों ने बताया कि उस नीलगाय को कुछ कुत्ते दौड़ाते हुए गांव की ओर ले लाये थे।
कुत्ता से वह अपनी “जान” बचाने के लिए घर के छप्पर पर चढ़ गया।
घर पर चढ़े “नीलगाय” को देखने के लिए लोगों की भारी भिड़ लग गयी।बताते चलें की जंगली जानवरों की सुरक्षा “वन विभाग” के द्वारा नहीं किया जा रहा है,जिससे ग्रामीणों के “घर” को,तो कभी “खेती” को काफी नुकशान हो रहा है।इससे किसानों की “रीढ़ की हड्डी” टूट जा रहा है।इसे आप “वन” विभाग को “मौन” नहीं कहेंगे तो “क्या” कहेंगे किसानों की खेती नहीं,बल्कि जानवरों को “सुरक्षित” रखने की जरूरत है।अगर जानवर सुरक्षित रहेंगे तो किसान “आजाद” रहेगा।NEWSTODAYJHARKHAND.COM