निर्भया मामले के दोषीयों की फांसी में हो रही विलम्ब पर केंद्र ने कहा यह एक सुनियोजित चाल
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निर्भया मामले के दोषीयों की फांसी में हो रही विलम्ब पर केंद्र ने कहा यह एक सुनियोजित चाल
NEWS TODAY – निर्भया दोषियों को होने वाली फांसियों पर हो रहे विलम्ब को लेकर केंद्र सख्त हो गया हैl केंद्र ने रविवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि निर्भया मामले में फांसी की सजा पाए चार दोषी अब और समय के ‘‘हकदार नहीं हैं। केंद्र ने साथ ही हैदराबाद की पशु चिकित्सक के सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले का उल्लेख किया जिसमें चारों आरोपी कथित तौर पर पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे और कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और मौत की सजा को तामील कराने की उसकी शक्ति दांव पर है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता केंद्र और दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जिन्होंने 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार एवं हत्या मामले के दोषियों की फांसी की सजा की तामील पर रोक लगाने के निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करने का अनुरोध किया है।
मेहता ने कहा कि मामले के दोषी कानून के तहत मिली सजा के अमल पर विलंब करने की सुनियोजित चाल चल रहे हैं और ‘‘देश के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। न्यायमूर्ति सुरेश कैत ने केंद्र और दिल्ली सरकार की संयुक्त अर्जी पर तीन घंटे की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस दौरान दोषी मुकेश कुमार का प्रतिनिधित्व कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेक्का जॉन ने दलील दी कि चूंकि उन्हें एक ही आदेश के जरिए मौत की सजा सुनाई गई है, इसलिए उन्हें एक साथ फांसी देनी होगी और उनकी सजा का अलग-अलग क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता। जॉन ने कहा, ‘‘मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने प्रक्रिया विलंबित की, मैं बहुत खराब व्यक्ति हूं, मैंने एक घोर अपराध किया है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती, इसके बावजूद मैं संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) की हकदार हूं।
मेहता ने दलील दी कि दोषी पवन गुप्ता का सुधारात्मक या दया याचिका दायर नहीं करने का कदम सुनियोजित है। कानून अधिकारी ने कहा कि निचली अदालत द्वारा नियमों की व्याख्या के तहत यदि पवन गुप्ता दया याचिका दायर नहीं करने का फैसला करता है तो किसी को भी फांसी नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा, ‘‘दोषियों द्वारा प्रक्रिया को विलंबित करने की सुनियोजित चाल चली जा रही है जिससे निचली अदालत द्वारा कानून के तहत सुनायी गई उस सजा के अमल पर देर करायी जा सके जिसकी दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुष्टि की थी और जिसे उच्चतम न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।