जाने क्या है जीवन में संन्यास का महत्व…..?
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नई दिल्ली।
जाने क्या है जीवन में संन्यास का महत्व…..?
संन्यास का अर्थ ही यही है कि मैं निर्णय लेता हूं कि अब से मेरे जीवन का केंद्र ध्यान होगा और कोई अर्थ ही नहीं है संन्यास का। जीवन का केंद्र धन नहीं होगा, यश नहीं होगा, संसार नहीं होगा। जीवन का केंद्र ध्यान होगा, धर्म होगा, परमात्मा होगा-ऐसे निर्णय का नाम ही संन्यास है। तो जो व्यक्ति ध्यान को जीवन के और कामों में एक काम की तरह करता है, चौबीस घंटों में बहुत कुछ करता है, घंटेभर ध्यान भी कर लेता है- निश्चित ही उस व्यक्ति की बजाय जो व्यक्ति अपने चौबीस घंटे के जीवन को ध्यान को समॢपत करता है, चाहे दुकान पर बैठेगा तो ध्यानपूर्वक, चाहे भोजन करेगा तो ध्यानपूर्वक, चाहे बात करेगा किसी के साथ तो ध्यानपूर्वक, रात में सोने जाएगा तो ध्यानपूर्वक, सुबह बिस्तर से उठेगा तो ध्यानपूर्वक-ऐसे व्यक्ति का अर्थ है संन्यासी, जो ध्यान को अपने चौबीस घंटों पर फैलाने की आकांक्षा से भर गया है। निश्चित ही संन्यास ध्यान के लिए गति देगा और ध्यान संन्यास के लिए गति देता है। जीवन के केंद्र को बदलने की प्रक्रिया संन्यास है। जीवन में संन्यास का महत्व समझने और समझाने वाले मन को गुलाम बनाने का उपक्रम भी बताते हैं।
वह जो जीवन के मंदिर में हमने प्रतिष्ठा कर रखी है-इंद्रियों की, वासनाओं की, इच्छाओं की, उनकी जगह मुक्ति की, मोक्ष की, निर्वाण की, प्रभु-मिलन की, मूर्ति की प्रतिष्ठा ध्यान है।